सेहत पर आज *पान के गुणों के बारे में जाने..
अंग्रेजी में इसे बैटल लीफ और पाइपर बैटल भी कहते हैं।
पान की लता यानि बेल होती है।
इस बेल के पास नाग पाए जाते हैं इसलिए इसे नागवल्ली भी कहा जाता है।
संस्कृत के एक श्लोक के अनुसार पान के अन्य नाम, गुणधर्म और उपयोग…
ताम्बूलवल्ली ताम्बुली
नागिनी नागवल्लरी!
ताम्बूलं विशदं रुच्यं
तिक्ष्णोष्णं तुवरं सरम् !!
बल्यं रिक्तं कटु क्षारं
रक्तपित्तकरं लघु।
बल्यं श्लेष्मास्यदौर्गन्ध्य
मलवातश्रमापहम्!!
अर्थात- ताम्बूलवल्ली,
नागवल्लरी नागरवेल
नागिनी आदि पान के संस्कृत नाम है।
पान का पत्ता नाग के फन की तरह होने के कारण भी पूज्यनीय-पवित्र माना गया है।
पान खाने के फायदे एवं कायदे जाने…
भोजन के तुरन्त बाद पान खाने से कभी एसिडिटी की दिक्कत नहीं होती। पेट साफ रहता है।
पान के शरीर में कार्य और 8 फायदे…
【१】यह शरीर की सड़न, बदबू तथा सूक्ष्म कृमियों का नाश करता है।
【२】प्रदूषण के कारण फेफड़ों के संक्रमण, गले की खराबी से बचाता है।
【३】इसके सेवन से बुढापा जल्दी नहीं आता।
【४】अमृतम च्यवनप्राश भी उम्र रोधी अर्थात एंटीएजिंग ओषधि है। यह भी बुढापा नाशक एवं उम्ररोधी ओषधि है।
【५】 पान में मिलने वाला चविकन तेल सड़नरोधक, रोगनाशक बताया है।
【६】श्लेष्मिक रोग, गलन, कफ-खांसी में अत्यंत हितकर है।
【७】गले की भयंकर सूजन त्रिकटु युक्त चूर्ण और मुलेठी मिलाकर खाने से मिट जाती है।
【८】बच्चों की कोष्ठवद्धता यानि लैट्रिन जाम होने पर ग्रामीण लोग पान के ठन्थल पर तेल लगाकर गुदा द्वार में प्रवेश कराकर पेट के रोग ठीक कर देते हैं।
हिंदुस्तानी मैटीरिया मेडिका-उदयचंद कृत के अनुसार स्त्रियों के लिए चमत्कारी है।
पान का आकार नाग के फन की तरह होता है।
पान की लता गुदुच्यादि वर्ग की वनौषधि है।
इसके पत्ते पीपल, गिलोय और फनधारी काले नाग
की तरह होते हैं। इसके पत्तों पर मानव नसों की आकृति होती है।
श्री नरहरि वैद्य ने पान 7 प्रकार के बताए हैं-
मिठुआ, देशी, ग्वालियर का बिलौआ, महोबा,अम्लरसा, गुहागरे, मगहर आदि।
पान का उपयोग-
【1】खाने के तुरन्त बाद पान के सेवन से
सुंदरता आती है।
【2】त्वचा पर झुर्रियां नहीं पड़ती
【3】महिलाओं का तनाव, शिरःशूल पीड़ा, सिरदर्द, मानसिक तनाव मिट जाता है।
【4】मासिक धर्म की शुद्धता के बाद से अगले मासिक धर्म के आने तक यदि सुबह खाली पेट
1 या 2 पान महिलाएं नियमित खाएं, तो उनका श्वेतप्रदर, लिकोरिया, व्हाइट डिस्चार्ज की तकलीफ दूर होकर शरीर सुंदर होने लगता है।
【5】सौन्दर्य वृद्धि और बुढापा रोकने
के लिए अमृतम द्वारा 35 ओषधियों से अधिक मिलाकर तैयार किया गया ”
3 महीने तक उपयोग करें। इससे गजब की खूबसूरती बढ़ जाती है।
【6】पान खाने से सुप्त स्त्रियों में कामभावना का उदय होता है।
【7】एक महीने पान के पत्ते को स्त्रियां यदि अपने स्तनों पर10 दिन तक बांधे, तो उनके स्तन कठोर, बड़े, गोल हो जाते हैं।
【8】योनि तथा स्तनों का ढ़ीलापन दूर करने हेतु रोज रात को पान खाना लाभकारी है।
【9】योनि में पान के रस का फोहा लगाकर सुबह निकालकर फेंक दें, इससे योनि में शुद्धता आती है।
【10】चेहरे पर पान का रस लगाने से पुराने से पुराने दाग-धब्बे मिट जाते हैं।
पान की इसी विशेषता का अध्ययन-अनुसंधान करके अमृतम ने फेस क्लीनअप लिक्यूूूड लेप निर्मित किया है,
जो त्वचा को पूरी तरह निखारकर, खूबसूरती बढ़ाता है।
चरक सहिंता के द्रव्यसंग्रहणीय अध्यायों में ताम्बूल ने भी पान की प्रशंसा लिखी है।
पान खाने के फायदे…
【11】पान खाने से दसो इंद्रियां जाग्रत हो जाती है।
【12】रक्त को साफ करने में यह चमत्कारी है
【13】भोजन पश्चात पान सेवन करने से पाचनतंत्र मजबूत होता है।
【14】 ऊर्जा-उमंग का संचार होकर तनांव मिट जाता है।
पान का धर्म से नाता…
अघोर पंथ में ऐसी मान्यता है कि मंगलवार के दिन
शिंवलिंग एवं हनुमानजी को 108 पान के पत्ते की माला अर्पित कर 27 दीपक राहुकी तेल के जलाने से मांगलिक दोष का दुष्प्रभाव मिटकर शीघ्र विवाह हो जाता है।
मानसिक अशांति, ग्रह-क्लेश, मुकदमे बाजी और राहु से पीड़ित जातक को 5 दीपक राहुकी तेल के
जलाकर -11 मंगलवार लगातार 27 पान के पत्ते की माला शिंवलिंग पर चढ़ाना चाहिए।
इस पराग को 27 दिन लगातार करने से हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। धन एकत्रित होने लगता है।
पान का सम्मान अभी कुछ विशेष शेष है।
शेषनाग और शिवजी से पान का क्या सम्बन्ध है। जाने अगले ब्लॉग में अमृतम पत्रिका पढ़े।
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पान के कुछ रोचक तथ्य पान के पत्ते
पर ही क्यों लगाते हैं- भगवान को प्रसाद, नैवेद्य और भोग-
जाने – जबरदस्त जानकारी!
पान भी तनाव मिटाता है।
पान को नागवल्ली भी कहते हैं यदि भोग-विलास के भाव से खाएंगे, तो यह लाभदायक नहीं होता।
आयुर्वेद ग्रंथों में पान की उत्पत्ति अमृत की बूंदों से हुई, जब समुद्र मन्थन हुआ था। यह देवी-देवताओं को अतिप्रिय है,
तभी ईश्वर को नैवैद्य, भोग को पान के पत्ते पर रखकर अर्पित करने की प्राचीन परम्परा है।
स्कंदपुराण के नैवेद्य प्रकरण श्लोक के अनुसार बिना पान के पत्ते पर रखा गया भोग, रोग उत्पन्न कर भोग्यहीन बना देता है।
देवता भी पानरहित प्रसाद स्वीकार नहीं करते। इस भोग का भोजन भूत-प्रेत एवं दुष्ट आत्माएं ग्रहण करती है।
जो तनाव का कारण होता है।
शिव रहस्य सूत्र, कालितन्त्र, रहस्योउपनिषद एवं व्रतराज सहिंता आदि में भी ऐसा वर्णन है।
कैसे लगाए भोग..
वैसे तो भोग कहना भगवान के लिए सही शब्द नहीं है।
रुद्र सहिंता तथा व्रतराज ग्रन्थ के मुताबिक ईश्वर को नैवेेद्य अर्पित किया जाता है,
जो चढ़ने के बाद प्रसाद रूप में सबको बांटते हैं।
फिर जो लोग या भक्त इसे ग्रहणकर खाते हैं, उसे भोग कहा जाता है।
भोग झूठन शब्द है। कोशिश करें कि- ईश्वर को कुछ भी खाद्य-पदार्थ अर्पित करें, तो नैवेद्य कहना उचित होगा।
ये मन्त्र बोले, तो भगवान भी हो जाएंगे प्रसन्न।
इसका भी रखे ध्यान…
प्रसाद लगाते समय निम्नलिखित 5 मन्त्र अवश्य बोले अन्यथा ईश्वर या देवता इसे ग्रहण नहीं करते-
ॐ व्यानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा
ॐ अपानाय स्वाहा
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ प्राणाय स्वाहा
फिर जल हाथ में लेकर प्रसाद के चारो तरफ घुमाकर प्रथ्वी पर छोड़ना चाहिए।
इस प्रकार से नैवेद्य अर्पित करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
सुख-समृद्धि बढ़ती है। एक बार 54 दिन नियमित रूप से ऐसा करके देखें।
चमत्कार होने लगेगा।
पान के बारे में विस्तार से जानने के लिए एक प्राचीन ग्रन्थ के यह लेख पढ़ें…
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