रायपुर: भारतीय संस्कृति में चन्द्र वर्ष का प्रयोग किया जाता है। चन्द्र वर्ष को ही संवत्सर कहा जाता है। ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है अग्नि, नारद आदि पुराणों में वर्णित साठ संवत्सरों में ये पचासवां संवत्सर शिवविंशति समूह का संवत है जिसका नाम ‘नल संवत्सर’ है। नल संवत्सर का स्वामी अग्नि है और इस वर्ष में राजा शनि और मंत्री गुरू हैं। इस संवत्सर का वर्षफल उत्तम नहीं होगा, इस वर्षफल में मध्यान्ह में दुख, उत्तरार्ध में सुख तथा पश्चिम में दुर्भिक्ष तथा जनता में जातिवाद एवं प्रीति की कमी तथा आपसी अविश्वास बढ़ेगा, अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग, उपद्रव आदि होते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार नया साल चैत्र नवरात्र से शुरू होता है| चैत्र नवरात्र मां के नौ रूपों की उपासना का पर्व भी है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर माँ दुर्गा 02 अप्रैल 2022 शनिवार के दिन अश्व (घोड़े) पर सवार होकर आ रही हैं। शनिवार को प्रारंभ होने के कारण पूरा संयोग ही बेहद शुभ साबित होने वाला है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र 02 अप्रैल 2022 से शुरू होकर 11 अप्रैल 2022 तक पूरे 09 दिनों तक रहेंगे। इन नौ दिनों में माता के भक्त मां के नौ रुपों की पूजा करते हैं। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना से लेकर देवी की उपासना विधि विधान से करने पर व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होगीण् ब्रह्म पुराण के अनुसार, देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि निर्माण करने के लिए कहा था। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त
चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक अवधि – 02 घण्टे 21 मिनट्स घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11.44 बजे से लेकर 12.33 मिनट तक (घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है.) प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 01, 2022 को 11 बजकर 54 मिनट से शुरू प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 02, 2022 को 11 बजकर 59 मिनट तक. इसके पश्चात अभिजित मुहुर्त में भी स्थापना की जा सकती है।
कलश स्थापना विधि
कलश स्थापना के लिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो कर पूजा का संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बोया जाता है और इसी वेदी पर कलश की स्थापना की जाती है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। इस दौरान अखंड दीप जलाने का भी विधान है। इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की पूजा आरंभ की जाती है।
दुर्गा सप्तशती पाठ से भक्तों की कई मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, लेकिन यदि कोई भक्त पूरा पाठ नहीं कर सकते हैं, तो शास्त्रों में उनके लिए कई तरह के विधान है। मां दुर्गा के कई मंत्रों का जाप करके उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते हैं। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत जाप से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।
स्व कल्याण के लिए
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
बाधा मुक्ति और धन प्राप्ति के लिए सप्तशती का यह मंत्र जपे
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवषयंति न संशय॥
आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
विपत्ति नाश के लिए
शरणागतर्दिशनार्त परित्राण पारायणे।
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
रक्षा के लिए
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नरू पाहि चापज्यानिरूस्वनेन च।।
स्वर्ग और मुक्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
विघ्ननाशक मंत्र
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्॥
इस संवत्सर के आकाशीय मंत्रिमंडल के गठन के अनुसार राजा शनि और मंत्री गुरू होंगे, शनि न्याय के देवता हैं इसलिए इस वर्ष यथोचित न्याय मिलेगा। पूरा आकाशीय मंत्रिमंडल और उसका प्रभाव इस प्रकार रहेगा।
संवत राजा शनि
कुछ पारस्परिक विरोध और टकराव की स्थिति देखी जा सकती है। राजनेताओं के मध्य भी स्थिति असंतोषजनक होगी, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे। प्राकृतिक रुप से भी परेशानी झेलनी पड़ेगी, बाढ़ एवं सूखे की समस्या देश के कई राज्यों को प्रभावित करेगी। अस्थिरता व भय का माहौल भी होगा।
संवत मंत्री स्वामी गुरू
गुरू के मंत्री पद में आने पर वृक्षो में प्रचुर मात्रा में फल फूल आयेंगे। जिससे आर्थिक क्षेत्र अच्छा रहता है। धन धान्य में वृद्धि होती है।
सस्येश (फसलों) का स्वामी शनि
अनाज महंगा हो सकता है। इस समय पर मौसम की प्रतिकूलता के चलते खेती को नुकसान हो सकता है।
मेघेश का स्वामी बुध
मेघेश बुध हैं, इस कारण अधिक वर्षा की स्थिति बनेगी। इस कारण जान-माल का नुकसान भी होगा। राज्य में नियमों की कठोरता के कारण लोगों के मन में चिंता और विरोध की स्थिति भी पनपेगी। बीमारी का प्रभाव लोगों पर शीघ्र असर डाल सकता है।
धान्येश शुक्र का प्रभाव
धान्येश शुक्र के होने से रसदार वस्तुओं में वृद्धि देखने को मिल सकती है। चावल कपास की खेती अच्छी हो सकती है। दूध के उत्पादन में भी तेजी आएगी। तालाब, नदियों में जल स्तर की स्थिति अच्छी रहने वाली है।
रसेश चंद्रमा का प्रभाव
रसेश का स्वामी चंद्रमा के होने से साधनों की वृद्धि होगी। आर्थिक रुप से संपन्न लोगों के लिए समय ओर अनुकूल रह सकता है। रसदार फल और फूलों की पैदावर भी अच्छी होगी। विद्वानों को उचित सम्मान भी प्राप्त हो सकेगा।
नीरसेश शनि का प्रभाव
नीरसेश अर्थात रसहीन यानि धातुएं, इनका स्वामी शनि के होने से माणिक्य, मूंगा पुखराज इत्यादि में महंगाई देखने को मिल सकती है। गर्म वस्त्र, चंदन लाल रंग की वस्तुएं ताम्बा, पीतल में तेजी देखने को मिलेगी।
फलेश मंगल का प्रभाव
फलेश मंगल के होने से इस समय वृक्षों पर फल फूल अधिक लगेंगे ऐसे में फलों का उत्पादन अधिक होने से दाम कम होगा। पर्वतीय स्थलों पर मौसम की अनियमितता के कारण अधिक परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
दुर्गेश शनि का प्रभाव
दुर्गेश अर्थात सेना के स्वामी इस समय शनि होंगे। इस स्थिति के चलते अराजकता को निपटाने के लिए कठोर नियमों का सहारा लिया जा सकता है। इस समय जातीय सांप्रदायिक मतभेद भी उभरेंगे। राजा शनि के स्वराशि मकर राशि में होने से राजा के मत अनुसार मामलों का निपटारा हो सकता है।
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