– अखिल पांडे
आचार संहिता कब लगेगी ?
आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए आचार संहिता कब से लगेगी इस पर कयास लग रहा है। पिछले चुनाव में निर्वाचन आयोग ने 8 अक्टूबर को चुनाव की घोषणा की थी। चुनाव की घोषणा के साथ ही आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लग जाती है। इस बार 5 अक्टूबर के बाद कभी भी चुनाव की घोषणा होने की उम्मीद की जा रही है। दरअसल, प्रधानमंत्री आगामी चुनाव के लिए ताबड़तोड़ चुनावी दौरा कर रहे हैं। इसमें लोकार्पण व शिलान्यास का कार्यक्रम भी शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 5 अक्टूबर को जबलपुर में कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के बाद चुनावी राज्यों में कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है। इसलिए माना जा रहा है कि 5 अक्टूबर के बाद कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है।
मोदी को मिल गई पिच,आक्रामक बैटिंग
यह बात पहले से तय था कि, भाजपा राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। स्थानीय मुद्दों वाले विधानसभा चुनाव में मोदी का चेहरा कितना असरकारक होगा इस पर विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन छत्तीसगढ़ व राजस्थान में जो रूप नरेंद्र मोदी का उभर कर सामने आया है उस पर सहसा विश्वास नहीं हो रहा है। भोपाल व जयपुर के बाद बिलासपुर में जिस तरह से मोदी का आक्रामक भाषण सामने आया है, वह तगड़ी फील्डिंग और विशेष रणनीति के तहत है। देश भर में ब्रांड मोदी पिछले साढ़े नौ वर्षों से भाजपा के लिए विश्वसनीय रहा है। लेकिन राज्यों के चुनाव में ब्रांड मोदी का यह रूप पहली बार देखने को मिल रहा है। डॉ. रमण सिंह, वसुंधरा और शिवराज इस ब्रांड के सामने फीके नजर आ रहे हैं। मोदी अपने भाषण शैली में दो बात पर विशेष जोर दे रहे हैं। अव्वल, “मोदी यानी काम की गारंटी” या “अब आपका सपना मोदी का संकल्प है।” दूसरा “आपका वोट, उम्मीदवार, और जीत कमल के लिए” इस बात ने स्थानीय नेताओं का मुख मलिन कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं की पीएम मोदी की कार्यशैली से आम जनता भली-भांति परिचित है। ऐसे में मोदी के प्रति उत्साह की लहर छत्तीसगढ़ व राजस्थान में देखने को मिल रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में यह उत्साह वोट में परिवर्तित हो पाएगा इसमें संदेह है। क्यूंकि भाजपा के उम्मीदवारों की लिस्ट मीडिया में लीक होने के बाद जिस तरह से लोगों में प्रतिक्रिया सामने आई है वह अलग ही संकेत करता है। लोकसभा में भाजपा उम्मीदवार और राज्य के चुनाव के उम्मीदवार के बीच यह मौलिक अंतर है।
किसने दी मोदी को बैटिंग पिच
साढ़े नौ वर्षों से पीएम रहने के बाद राज्यों के आगामी चुनाव में नरेंद्र मोदी आम लोगों के सपने साकार करने की गारंटी ले रहे हैं। आम लोगों में यह विश्वास पैदा करने की कोशिश है कि, अब काम तेज गति से होगा और यह मोदी की गारंटी है। हालांकि कुछ महीनों पहले कर्नाटक में यह विश्वास औंधे मुंह गिर गया था। लेकिन हिंदी पट्टी वाले राज्यों में मुद्दे अलग हैं, जिसे दक्षिण के राज्यों से तुलना करना मुनासिब नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का कार्यक्रम लगातार बन रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी सबने पीएम मोदी को टारगेट किया। इसके अलावा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक तरह से बड़े कैनवास पर बैटिंग करते दिखाई पड़ते हैं, जिसका मुकाबला पीएम मोदी से होता है। राम वन गमन पथ यानी सॉफ्ट हिंदुत्व, गाय-गोबर या फिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुद्दे यह सीधे भाजपा के कोर मुद्दे के मुकाबले में दिखाई पड़ते हैं। पिछले पंद्रह वर्षों में छत्तीसगढ़ के रमन सिंह सरकार को टारगेट करने के बजाय भूपेश बघेल ने अपने कामों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया है। राजस्थान की बात करें तो यहां भी अशोक गहलोत ने कभी वसुंधरा राजे पर टारगेट नहीं किया। जिसकी वजह से पीएम मोदी को बैटिंग करने लायक पिच मिली।
रमण सिंह की इमेज के कारण महत्वहीन रहे उम्मीदवार, लेकिन….
2003 का चुनाव अजीत जोगी के खिलाफ भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह से चुनाव लड़ा था उसे कारपेट बमबार्डिंग यानी बम वर्षा कहा गया था। यानी हर छोटे-छोटे क्षेत्रों में भारी तादाद में भाजपा नेताओं की सभा जोगी सरकार के खिलाफ हुई थी। इसका शहरी क्षेत्रों में विशेष प्रभाव देखा गया। लेकिन ग्रामीण मैदानी क्षेत्रों में इसका प्रभाव कम था। दलबदलू कांग्रेस नेताओं की हार और बस्तर व सरगुजा में भाजपा की भारी जीत से भाजपा बहुमत में आ गई। लेकिन इसके बाद के चुनावों में चावल का मुद्दा, 2013 में रमन सिंह स्वयं मुद्दा बन गए। एक तरह से चावल वाले बाबा और कल्याणकारी योजना लाने वाले नेता की छवि रमन सिंह की बन गई। इसके कारण उम्मीदवार का महत्व इतना नहीं था जितना की राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर डॉ रमन सिंह की छवि। और यही बात 2018 में दिखाई दी, जब कलेक्टिव लीडरशिप और कांग्रेस के घोषणा पत्र पर आम लोग रिझ गए। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति भी नहीं की कोई भी उम्मीदवार चल जाएगा। उम्मीदवारों को लेकर लोगों में गंभीरता है। क्योंकि भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ आम जनता में आक्रोश जैसी स्थिति नहीं है। कुल मिलाकर ब्रांड मोदी काम कर जाएगा ऐसा तो फिलहाल नहीं लगता।
भाजपा में मोदी मैनेजमेंट का पहरा
राज्य में चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह से भाजपा की केंद्रीय टीम तैयार है। तीन स्तर पर मॉनिटरिंग के साथ हर विधानसभा क्षेत्र में केंद्रीय टीम का नियंत्रण होगा। दूसरे राज्यों के विधायक, सांसद और फिर केंद्रीय मंत्रियों की त्रिस्तरीय संरचना के साथ पूरे राज्य में चुनाव अभियान को नियंत्रित करने का प्लान है। सभी जिलों व शहरी क्षेत्रों के विधानसभा के लिए अलग-अलग टीम बनाई गई है। चुनाव के दौरान स्थानीय नेताओं की शिकायत पर गंभीरता से कार्रवाई होने की बात कही जा रही है।
चर्चा में-
0 भाजपा विधायकों में दोबारा टिकट मिलने पर संदेह बरकरार है।
0 जिन्हें भाजपा टिकट दिया जा रहा है, उनको 29 सितंबर को फोन पर जानकारी दी गई थी।
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