साप्ताहिक कॉलम – अरपा के धार

साप्ताहिक कॉलम – अरपा के धार

अखिल पांडे

भाजपा में प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट अमित शाह के दिल्ली लौटने के बाद कभी भी चुनाव समिति की बैठक होने की बात की जा रही थी। लेकिन फिलहाल बैठक कब तक होगी इसकी जानकारी नहीं आ रही है। अलबत्ता प्रधानमंत्री इंडोनेशिया के दौरे के बाद दिल्ली में जी-20 की बैठक में व्यस्त रहेंगे। 11 सितंबर तक लिस्ट जारी होने की संभावना नहीं दिख रही है। इधर संसद के विशेष सत्र से पहले 14 सितंबर को प्रधानमंत्री का छत्तीसगढ़ दौरे पर आने वाले हैं। इस स्थिति में भाजपा की दूसरी लिस्ट कब जारी होगी इस पर कोई भी कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं हैं।
कांग्रेस पहली लिस्ट जल्द जारी करने पर उतावली थी वह भी ठंडा पड़ता दिख रहा है। अभी स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक नहीं हुई है। इस कमेटी में हर विधानसभा सीट से दो से तीन नाम सेंट्रल इलेक्शन कमेटी को भेजा जाएगा। एक अंग्रेजी अखबार में खबर आई है कि, राहुल गांधी यूरोप के लिए रवाना हो चुके हैं। ऐसे में लिस्ट फाइनल करने के लिए आगे क्या कार्रवाई होती है यह देखने वाली बात है। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे के दौरे से यह आशंका दूर हो सकती है। इसके बावजूद 12 सितंबर से पहले लिस्ट निकलेगी इस पर संदेह है।

भाजपा में सब कुछ केंद्रीयकृत

भाजपा में सेंट्रल कमान जिस तरह से दूसरी व तीसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ा रही है, उससे यह समझ बनती है कि, पहली पंक्ति के लोगों का क्या होगा जो डेढ़-दो दशकों से कुंडली मारकर बैठे हैं। दूसरी व तीसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाने का नतीजा भी समय-समय पर सामने आ रहा है। मसलन विधायक सौरभ सिंह के खिलाफ वरिष्ठ ओबीसी नेताओं द्वारा उनके क्षेत्र में घेराबंदी किए जाने का मामला सामने आया है। इसकी शिकायत भी अमित शाह से की गई। इधर ओपी चौधरी को पचाना पुराने नेताओं के लिए आसान नहीं है। आरोप पत्र की कॉपी लीक होने में जिस तरह से जिम्मेदार लोगों को अमित शाह ने हड़काया है, उससे साफ पता चलता है कि प्रदेश बीजेपी में आने वाले दिनों में अमित शाह को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। अभी जिन सीटों पर विवाद नहीं है उन 21 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान किया गया है। आने वाली सीटों पर लिस्ट निकलने के बाद टकराव बढ़ेगा यह तय है। लेकिन एक बात यह भी तय है कि, सर्वे के आधार पर टिकट वितरण का फैसला आम कार्यकर्ताओं को पसंद आ रहा है। टिकट के दावेदारों में कुछ लोगों से मेरी बात हुई तो यह गौर करने वाली बात थी कि दावेदार में सेंट्रल कमान पर पूरा विश्वास दिखा,जबकि पैसे व पहुंच वाले नेताओं में बेचैनी साफ झलकी।

मीडिया हाईप किसे मिल रहा?

भाजपा द्वारा 21 सीटों पर प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी करने के बाद जो प्रदेश में चुनावी पारा सर पर चढ़ा है, वह उतरते नहीं दिख रहा है। नहीं तो निर्वाचन आयोग के चुनाव तारीख की घोषणा के बाद टिकट दावेदारों को लेकर पार्टी में माथापच्ची शुरू होती थी। तब तक प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के काम आम जन तक पहुंचाने के लिए बड़े-बड़े सरकारी आयोजन करती थी। अगर आपको याद हो तो अगस्त से सितंबर तक भाजपा सरकार में विकास यात्रा निकाली जाती थी। मुख्यमंत्री जिला मुख्यालयों में रात गुजारते थे। करोड़ों रुपये के कार्यों का लोकार्पण व भूमिपूजन किया जाता था। सरकार का जलवा देखते ही बनता था। सारी मीडिया इस बात पर तैयारी करती थी कि विधानसभा क्षेत्रों में बड़े दावेदार कौन हैं। मुझे याद है कि हम लोग हर विधानसभा क्षेत्र की रिपोर्ट तैयार करते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। चुनाव को लेकर इस बार मीडिया भी पीछे हो गई है। मीडिया की सारी सुर्खियां भाजपा के प्रत्याशियों की लिस्ट पर विश्लेषण और भाजपा प्रदेश मुख्यालय में होने वाली बैठकों तक सिमट गई। कांग्रेस के बड़े नेताओं के दौरे अमित शाह के दौरे के सामने फीके नजर आए। कुल मिलाकर कहा जाए तो भाजपा पहली लिस्ट जारी करने का दांव चली, वह निशाने पर लगी दिखाई दे रही है। इसके बावजूद कांग्रेस के सरकारी कार्यक्रमों जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आए थे, उनके कार्यक्रमों में किसी प्रकार की कमी नहीं थी। जांजगीर और राजधानी के कार्यक्रमों में भीड़ जमके पहुंची थी। फिर भी वह हाईप कांग्रेस को क्यों नहीं मिली यह सोचने वाली बात है। इस पर मेरा दिमाग खटकता है कि, क्या सरकारी आयोजन वाली भीड़ व शुद्ध चुनावी भीड़ में एक बड़ा अंतर है। लगभग यही कारण है कि प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाला यह कार्यक्रम नहीं दिखा। इधर कांग्रेस की पहली लिस्ट का पता नहीं है तो दूसरी तरफ मीडिया में जी-20 व संसद के विशेष सत्र का हल्ला है, तो प्रदेश भाजपा की दूसरी लिस्ट को लेकर मीडिया में कौतूहल अलग। ऐसे में आम मतदाता के मनोविश्व को मथने में क्या भाजपा सफल नहीं हुई है? यह सवाल मन में पैदा करता है।
मीडिया हाइप की अलग ही चिंता
राज्य के भाजपा नेताओं को मीडिया में स्पेस नहीं मिल पा रहा है। इस बात को लेकर संगठन में चिंता है। मीडिया समिति भी बनी हुई है लेकिन यह काम पूरा नहीं हो पा रहा है। दरअसल, खबरें केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों तक खबरें गायब हो रही है। इसकी वजह क्या हो सकती है इस पर भाजपा में मंथन चल रहा है। सेंट्रल कमान इस पर वैकल्पिक रणनीति बना सकती है। क्योंकि राजनीति को प्रभावित करना इस तरह से मुमकिन नहीं होगा।
केंद्रीय नेताओं के दौरे से क्या कांग्रेस को नुकसान नहीं
लाख टके का सवाल है कि आखिर प्रदेश की राजनीति को कौन मथ सकता है, कौन प्रभावित कर सकता है। कांग्रेस में भूपेश बघेल की छवि ही काफी है, लेकिन वर्तमान कांग्रेस की राजनीति उलझी दिखती है। तो भाजपा में इस पर कोई सोच है भी या नहीं यह समझ में नहीं आ रहा है। यह अलग बात है कि भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट में जमीनी पकड़ वाले प्रत्याशियों को उतार कर कार्यकर्ताओं को सकारात्मक संदेश दिया है। लेकिन नेतृत्व को लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं हुई है। जबकि कांग्रेस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि अपने चरम पर है।प्रदेश की राजनीति को जिस तरह से दिशा देने की क्षमता भूपेश बघेल में है, उस पर फोकस कम हो रहा है। कांग्रेस लगातार केंद्रीय नेतृत्व के दौरे जिस तरह से करा रही है उससे भूपेश बघेल की छवि पर डेंट लग रहा है। मल्लिकार्जुन खड़गे दो दिनों के प्रवास पर आ रहे हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा का धुंआधार दौरा मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में होना है। जबकि राहुल गांधी के दौरे भी होंगे। इस स्थिति में क्या प्रदेश की राजनीति भटकाने वाला नहीं है। पिछले चुनाव में प्रदेश व देश की राजनीति को लेकर आम मतदाताओं का मूड बिल्कुल अलग-अलग था। यह विधानसभा व लोकसभा के चुनाव परिणाम में हम देख चुके हैं।, तो फिर राष्ट्रीय नेताओं का प्रदेश में दौरा करना कितना फायदेमंद है। एक बात और जान लें, भूपेश बघेल की छवि पर ही चुनाव का सारा दारोमदार है। लेकिन राष्ट्रीय नेताओं का जितना दौरा प्रदेश में होगा उतना स्पेस भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को मिलेगा। कुल मिलाकर कहें कि प्रदेश की राजनीति को कोई प्रभावित कर सकता है तो प्रादेशिक नेता ही कर सकते हैं। चाहे वह बीजेपी हो या फिर कांग्रेस। इसलिए भूपेश बघेल, डॉ. रमन सिंह सहित अन्य राज्य के नेताओं की सक्रियता ही प्रदेश के मतदाताओं का मन बदल सकता है। राष्ट्रीय नेताओं के दौरे से अगर सबसे अधिक नुकसान होगा जिस पार्टी को होगा, तो वह कांग्रेस है। क्यूंकि भाजपा वैसे भी केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा कर रही है।

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में क्या रहा है

प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर भाजपा ने एक वीडियो जारी किया था। जिसमें प्रियंका गांधी को हाशिए पर रखने की कोशिश होने की बात कही है। इधर केंद्रीय चुनाव समिति के गठन के बाद एक बार फिर से यह सवाल नुमाया हो गया है कि कांग्रेस में कुछ ठीक नहीं। चुनाव समिति में कुछ सदस्यों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। भूपेश बघेल, अशोक गहलोत, कमलनाथ, सचिन पायलट सहित कई नाम इस समिति में नहीं है। बड़ी बात यह कि, इसमें प्रियंका गांधी का नाम भी नहीं है। जबकि वे एमपी व छत्तीसगढ़ की स्टार प्रचारक हैं। कांग्रेस अपनी पहली लिस्ट जल्दी जारी करना चाहती है और इधर राहुल गांधी विदेश रवाना हो गये हैं। इन दिनों कांग्रेस में जो भी हो रहा है वह साफतौर पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। बस अरपा-पैरी का पानी देखिए और पानी की धार देखिए।

ब्राह्मण समाज का कांग्रेस प्रवेश

बिलासपुर ब्राह्मण समाज के प्रमुख का कांग्रेस प्रवेश हुआ है। बताया जाता है कि कुछ दिनों में और भी समाज के लोगों का कांग्रेस प्रवेश होना है। वैसे भी बिलासपुर क्षेत्र में ब्राह्मणों का बीजेपी से मोहभंग हो चुका है। बिलासपुर व तखतपुर सीट की हार ने यह जाहिर किया है। मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा के प्रयासों से समाज के लोगों ने कांग्रेस प्रवेश किया है। लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को होता है या नहीं यह देखने वाली बात है। ब्राह्मण समाज के लोगों का कांग्रेस प्रवेश भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। हालांकि यह संकेत जरुर है कि इस बार बीजेपी टिकट बंटवारे में ब्राह्मण समाज को संतुष्ट करेगी।


रेल रोको आंदोलन

कांग्रेस ने राज्य में ट्रेनों के रद्द होने का मुद्दा उठायाहै। यह मामला कोरोना के समय से चल रहा है। जब से ट्रेनें लेटलतीफी की शिकार हैं, तो ट्रेन रद्द करने के मामले बढ़े हैं। अब चुनाव नजदीक आते ही इस मुद्दे को कांग्रेस ने थाम लिया है। कुछ दिनों पहले सांसद सुनील सोनी ने रेल मंत्री से मुलाकात कर इस समस्या हल करने की मांग की थी। लेकिन ट्रेनों की समस्या दुरुस्त होने की बजाय बढ़ गई है। अब कांग्रेस के अल्टीमेटम का कितना असर होता है यह देखने वाली बात होगी। लेकिन इस मामले में भाजपा सरकार की उदासीनता राज्य के सांसदों के लिए मुश्किल पैदा करेगी।
लाल आतंक नाच रहा है
सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें हरियाली के बीच काली वर्दी व सामान्य पोशाक में लोग नाच रहे हैं। युवा व युवतियां अपने साथ बंदुक भी साथ में रखे हुए हैं। एक्स सोशल मीडिया में दावा किया गया है कि, नक्सली जश्न मनाते हुए नाच रहे हैं।

Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *