अरपा के धार..

अरपा के धार..

– अखिल पांडे

“अरपा के धार” कलम एक सप्ताह पहले लिखा था। लेकिन तकनीकी खराबी की वजह से पोस्ट नहीं कर पाया था। अब जबकि तकनीकी सुधार इस पोर्टल में हो चुका है और कॉलम के कंटेंट लगभग आज भी प्रासंगिक है। तो आपको सब प्रेम भेंट!

कांग्रेस संगठन सूची में असंतुलन !
पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज ने संगठन में नई नियुक्ति कर दी है। लेकिन पूरी सूची को लेकर जितने लोग उतनी बातें सामने आ रही है। माना जा रहा है कि चुनाव को ध्यान में रखकर पदाधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए थी, लेकिन जल्दबाजी में सूची जारी करने की बात हो रही है। पदाधिकारियों की नियुक्ति में सोशल इंजीनियरिंग को भी ध्यान में नहीं रखा गया है। खासकर जब चुनाव सिर पर है तो इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए था। फिलहाल संगठन में संयुक्त महासचिव व संयुक्त सचिव की नियुक्ति नहीं की गई है। शायद छूटे हुए नामों को इस पद पर एडजस्ट किया जाए। लेकिन अनुभवी नेताओं को सूची में शामिल नहीं करने व गुटीय संतुलन का ध्यान नहीं रखने के आरोप नई नियुक्ति में लग रह रहे हैं।

असंतोष बीजेपी में भी
21 प्रत्याशियों की घोषणा के बाद भाजपा में भी कम असंतोष नहीं है। डैमेज कंट्रोल के लिए लोगों को लगाया गया है। घोषित किए गए प्रत्याशियों के विरोधियों को पार्टी विरोधी काम से रोकने के लिए कुछ लोगों को जिम्मेदारियां दी गई है। कही जातिगत वोट बैंक को लेकर अपनी शिकायत है तो कही पर प्रत्याशियों के खिलाफ बगावत। सामान्य सीट प्रेमनगर पर एसटी वर्ग से प्रत्याशी देने पर अपनी नाराजगी है तो प्रबोध मिंज के ईसाई होने पर अलग तरह से शिकायत है। कारोबारी वर्ग के लोगों को खुश करना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जबकि ब्राह्मण वर्ग जो पहले से नाराज चल रहे हैं उन्हें कैसे खुश किया जाए यह भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि भाजपा का कोर वोट ब्राह्मण है। साथ ही ऊपर से सोशल इंजीनियरिंग को बनाए रखना है।

सबसे बड़ा प्रश्न एससी वोट किधर ?
वैसे तो पिछले विधानसभा चुनावों के बाद धीरे-धीरे मतदाता परिपक्व हो चुके हैं और उनका मिजाज वक्त के साथ बदल चुका है। एक तरह से मौन मतदाता ही प्रदेश के मतदाताओं का असली स्वरूप है। लेकिन इस बार लाख टके का सवाल है कि एससी वोटर किस तरफ हैं? क्योंकि रिजर्व सीटों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों के अनेक सीटों पर एससी वर्ग निर्णायक हैं।हाल में सतनामी धर्मगुरु बालदास के भाजपा प्रवेश के बाद एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि, एससी वोटर क्या भाजपा को वोट करेंगे ! जब से बसपा कमजोर हुई है तब एससी वोट बैंक कंफ्यूज है। इसमें कोई शक नहीं है कि जोगी कांग्रेस को एससी वोट भरपूर मिलता रहा है। लेकिन अजीत जोगी के निधन के बाद जोगी कांग्रेस भी कमजोर पड़ चुकी है। इस स्थिति में एससी वर्ग का कंफ्यूजन बढ़ता जा रहा है। लेकिन सवाल यह कि, एससी वोट किसके पक्ष में जाएगा। इस संबंध में अपना जो आंकलन है वह कांग्रेस को फायदा अधिक पहुंचने की बात सामने आई थी, लेकिन युवा वर्ग की बदली सोच भाजपा को फायदा पहुंचा रही है। मतलब यह कि, बसपा का कैडर वोट अब भी कंफ्यूज में है। वह कांग्रेस की ओर अधिक झुकाव वाला है। जबकि युवा व महिला वर्ग भाजपा के फेवर में अधिक दिख रहा है। इस संबंध में ग्रामीण इलाकों में लगातार मेरी चर्चा हुई थी। जिसमें युवा वोटों का झुकाव भाजपा की ओर दिख रहा है। जबकि गुरु बालदास का भाजपा प्रवेश पर एससी वर्ग अप्रभावित दिख रहा है। बालदास का जो प्रभाव है वह समय के साथ ढल चुका है। गुरु बालदास ने समाज में ऐसा कोई प्रेरणायुक्त काम नहीं किया जिससे समाज के अंदर अपनी छाप छोड़ सके। उनका पूरा काम सियासी होता है। यही कारण है कि समाज का एक बड़ा तबका बालदास के भाजपा प्रवेश पर अप्रभावित है।

क्या भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा है !
भाजपा को पास से जानने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि, भाजपा कैडर बेस्ड पार्टी है। यहां पर बड़े-बड़े फैसले हो जाते हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती की कोई खुलकर चूं भी बोल दे। जबकि कांग्रेस को लेकर कहा जाता है कि कांग्रेस को हराने के लिए कांग्रेस पार्टी ही काफी है। यानी गुटबाजी इस तरह से हावी होती है कि बाहर के दुश्मन की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन भाजपा में इस बार दबे तौर यह कहा जा रहा है कि इस बार भाजपा की लड़ाई भाजपा से है। मैं यह बात केवल छत्तीसगढ़ के संदर्भ में नहीं कह रहा हूं बल्कि आगामी आने वाले विधानसभाव वाले राज्यों की बात कर रहा हूं। राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सेंट्रल कमान का जलवा है उससे यही समझ बन रही है कि, इस बार लड़ाई अपने बीच की है। इसका दूसरा अर्थ आप स्वयं निकाल सकते हैं। सेंट्रल लीडरशिप पूरी तरह से चौकन्ना है। हर विधानसभा के लिए आब्जर्वर अभी से पहुंच चुके हैं। राज्य की सारी व्यवस्था धीरे-धीरे सेंट्रल कमान में जाती दिख रही है। राजस्थान में नरेंद्र मोदी स्वयं सीधे दखल दे रहे हैं लेकिन एमपी व छत्तीसगढ़ में अमित शाह व जेपी नड्डा चुनाव की कमान अपने हाथ लिए हैं। इस स्थिति में भाजपा में यह बात होना स्वाभाविक है कि, कुंडली मारकर बैठे नेताओं
का क्या होगा। क्या वे चुनाव में कदम से कदम मिलकर चलेंगे या फिर गुटबाजी सतह पर आएगी। आने वाला समय पहली बार भाजपा के लिए नया है। आलाकमान के अगले कदम को लेकर लोग चौकन्ना है।
ईडी की कार्रवाई तेज
चुनाव पास आते ही यह माना जा रहा था कि, ईडी की कार्रवाई सुस्त पड़ सकती है। दरअसल, यह माना जाता है कि, पुलिसिया कार्रवाई से कहीं न कहीं पीड़ित पक्ष को सहानुभूति मिल जाती है। ऐसे में छापे हो या फिर जेल भेजने की कार्रवाई अंततः उल्टा पड़ता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। चुनाव नजदीक आते ईडी, आईटी की कार्रवाई और बढ़ गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इस बार दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ा और लोकतंत्र की दुहाई भी देनी पड़ी। सारा मामला प्रधानमंत्री मोदी पर है। उन्हीं की छाया में विधानसभा चुनाव लड़ा जाना है। जैसा कि मालूम हो कि, प्रधानमंत्री मोदी ने वंशवाद व भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाया है। इस स्थिति में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई किस तरह से बढ़ेगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होगा। क्योंकि दूसरे राज्यों में भी यही स्थिति है। बंगाल, झारखंड में ईडी की कार्रवाई चल रही है।

साव को मिला हेलिकॉप्टर
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अब हवा में उड़ान भर रहे हैं। एक साल हो चुके उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बने। इस दौरान उन्होंने जिस तरह से दौरा किया है वह काबिले तारीफ है। यहां तक की रात में भी सफर करते हैं और दिन में कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते हैं। इस दौरान घर-परिवार को काफी कम समय दे पाए हैं। रात में वे कहीं भी रुक जाते हैं और दिन में दो से तीन जिलों का दौरा रोज करते रहे थे। अब पार्टी ने ख्याल कर साव को हेलिकॉप्टर उपलब्ध करा दिया है। इससे वे जरुर राहत महसूस कर रहे होंगे। हालांकि दौरा पहले से और बढ़ गया है।

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