साप्ताहिक कॉलम – गोंदली के फोकला

साप्ताहिक कॉलम – गोंदली के फोकला

– अखिल पांडे

बिलासपुर का किला भेदने “भरोसे का सम्मेलन” में खड़गे
सरकारी कार्यक्रम ‘भरोसे का सम्मेलन’ में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा सफल रही। सफल इस लिहाज से की करीब 40 हजार की भीड़ जुटाने में कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ी और राष्ट्रीय अध्यक्ष का बड़ा कार्यक्रम हो गया। लेकिन कार्यक्रम का प्रभाव कितना सफल रहा यह तो आने वाला समय बताएगा । बिलासपुर-जांजगीर क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। लेकिन बसपा या तीसरा मोर्चा उभरने से यह किला ढह चुका है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की सुनामी में भी यह क्षेत्र है जातिगत समीकरण के कारण कांग्रेस की सुनामी से अप्रभावित रहा तो भाजपा व तीसरे मोर्चे की लाज भी यही बची थी। पुराना बिलासपुर जिला व जांजगीर क्षेत्र की 15 सीटों में से कांग्रेस को केवल 4 सीटें मिली थी। बाकी की 11 सीटें भाजपा, बसपा व जोगी कांग्रेस के खाते में चली गई। जबकि प्रदेश भर में 15 सीटें जीतने वाली भाजपा को यहां 6 सीटें मिली थी। कांग्रेस की मुसीबत यह है कि पिछला परिणाम दोहराना आसान नहीं है, लेकिन आगामी चुनाव में कांग्रेस को इस क्षेत्र से उम्मीद अधिक है। बसपा व जोगी कांग्रेस के कमजोर होने से बेहतर परिणाम की उम्मीद कर रहे कांग्रेस को, अजा वर्ग को साधने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे से बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है।
ऊहापोह के बीच धर्मजीत भाजपा में
धर्मजीत सिंह व एसडी बड़गईया का आखिरकार भाजपा प्रवेश आज हो गया। आईएफएस बडगईया पहले से कतार में थे लेकिन धर्मजीत सिंह भाजपा राष्ट्रीय संगठन में बदलाव और दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस में टीएस सिंहदेव व चरणदास महंत के बढ़ते महत्व के बीच यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वे भाजपा ज्वाइन करे या नहीं। लेकिन आखिरकार मनसुख मंडाविया से मुलाकात के बाद धर्मजीत सिंह का भाजपा प्रवेश तय हुआ। अब सोचने वाली बात यह है कि बिलासपुर क्षेत्र का किला सुरक्षित करने के लिए भाजपा ने यह कदम उठाया है। दोनों ही भाजपा के नव प्रवेशी धर्मजीत सिंह तखतपुर व व एसडी बड़गईया बेलतरा से टिकट चाहते हैं। देखने वाली बात यह है कि भाजपा तखतपुर व बेलतरा में एक बार फिर ठाकुर-ब्राह्मण समीकरण बनेगी या फिर धर्मजीत को बिलासपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहेगी।
आप व गोंगपा की क्या होगी भूमिका
आप पार्टी की सक्रियता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जब डॉ संदीप पाठक को राज्यसभा के लिए आप पार्टी ने नामित किया था तब यह धारणा बनी थी कि, छत्तीसगढ़ में आप पार्टी संदीप पाठक के चेहरे पर विधानसभा चुनाव जोरशोर से लड़ेगी। जैसे गुजरात चुनाव में आप पार्टी ने प्रदर्शन किया। लेकिन संसद का अधिवेशन खत्म होने के बाद भी संदीप पाठक का आगामी दौरा अब तक तय नहीं हुआ है। हालांकि स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा वर्तमान विधायकों के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है। इधर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव क्षेत्र बिलासपुर व सरगुजा के रिजर्व सीटों पर है। गोंगपा की सक्रियता मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र तक है। लेकिन हीरा सिंह मरकाम के बाद पिछले चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है। उनकी विरासत संभाल रहे तुलेश्वर सिंह मरकाम पहले से अधिक सक्रिय नजर आ रहे हैं। लेकिन जिस तरह से राजनीति की दशा-दिशा समय के साथ बदलती रहती है। उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि गोंगपा का भविष्य बेहतर है। क्योंकि बगल के राज्य झारखंड का प्रभाव यहां आज नहीं तो कल देखने को मिलेगा।
शैलेष की पीड़ा का अंत नहीं
बिलासपुर विधायक शैलेष पांडेय की पीड़ा का अंत नहीं है। उत्तरी छत्तीसगढ़ का प्रमुख शहर बिलासपुर के सत्तारूढ़ दल का विधायक होने के बाद भी वह तवज्जो नहीं मिल रहा है जो यहां के विधायकों को पहले मिलता रहा है। यानी मध्यप्रदेश के जमाने से यहां का विधायक का जलवा-जलाल कम नहीं रहा। लेकिन शैलेष पांडेय को इस कार्यकाल में प्रदेश सरकार के ध्वजारोहण सूची में भी स्थान नहीं मिला। वैसे भी इस कार्यकाल में जिस तरह से उन्हें हाशिए पर रखा गया वह क्या कम है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि राजनीति में पैराशूट लैंडिंग की अपनी कैफियत होती है। यानी स्वीकार्यता समय के साथ मिलती है। भाजपा में युवा तुर्क सौरभ सिंह व ओपी चौधरी का जलवा है, तो इसलिए कि समय के पैमाने पर उन्होने कैडर बेस्ड पार्टी में भी अपनी महत्ता पार्टी के मातहतों तक साबित किया है। लेकिन शैलेष पांडे कांग्रेस के अंदर सत्ता समीकरण में अपने आपको फंसा लिया। टांग वहां फंसाया जहां पर बाकी नेताओं के टांग उनसे अधिक मजबूत थे। ऐसे में टांग पर जोखिम आना ही है।
दुग्गा का चौका
मनेन्द्रगढ़ कलेक्टर नरेन्द्र दुग्गे इस बार चर्चा में हैं। उन्होंने बता दिया कि सीएम के बाद डीएम ही पावरफुल होता है। कमिश्नर सरगुजा शिखा राजपूत तिवारी ने मनेन्द्रगढ़ में जिसे तहसीलदार नियुक्त किया था, उसके दूसरे ही दिन कलेक्टर ने मनेन्द्रगढ़ का तहसीलदार किसी अन्य अधिकारी को नियुक्त कर दिया। जबकि नरेन्द्र दुग्गे ने कमिश्नर द्वारा नियुक्त तहसीलदार को सुदूर क्षेत्र में नियुक्ति करने का आदेश निकाल दिया। नरेन्द्र दुग्गे प्रमोटी आईएएस हैं, लेकिन वे जिन अधिकारियों के साथ काम करते रहे हैं, उन सभी से उनका गजब का रसायन है। अब जबकि वे स्वयं कलेक्टर हैं और उनके पुराने अफसर सीएम के चहेते तो फिर डर किस बात की।

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