बिलासपुर14/05/021 आज 14 मई को अक्षय तृतीया का त्योहार है. ये दिन धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है क्योंकि युगों से इस दिन बेहद शुभ घटनाएं होती रही हैं. अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के नर-नरायण, हयग्रीव और परशुराम अवतार हुए थे. तमाम विद्वान मानते हैं कि इसी दिन से सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत, द्वापरयुग का अंत और कलयुग की शुरुआत हुई थी. चारों युगों की शरुआत और अंत की वजह से इस तिथि को युगादि तिथि भी कहा जाता है.
मान्यता है कि आज के दिन किया गया दान, पुण्य और शुभ कामों का क्षय नहीं होता. इसलिए लोग आज के दिन तमाम चीजों का दान करने के साथ जगह-जगह स्टॉल लगवाकर भोजन, पानी और शरबत पिलाने का शुभ काम करते हैं. इसके अलावा आज के दिन माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा की जाती है, साथ ही गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है. जानिए आज पूजा का शुभ समय और अन्य जरूरी जानकारी.
पूजा का शुभ समय
तृतीया तिथि प्रारंभ आज 14 मई 2021 को सुबह 05ः38 से होगी और समाप्त 15 मई की सुबह 07ः59 बजे होगी. पूजन का अति शुभ समय 14 मई को सुबह 5ः38 से दोपहर 12ः18 बजे तक रहेगा. लेकिन आप दिन में किसी भी समय पूजन कर सकते हैं क्योंकि आज का पूरा दिन ही अत्यंत शुभ माना जाता है.
अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें. एक चौकी पर नारायण और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. उनको पंचामृत और गंगाजल मिले जल से स्नान कराएं. इसके बाद चंदन और इत्र लगाएं. पुष्प, तुलसी, हल्दी या रोली लगे चावल, दीपक, धूप आदि अर्पित करें. संभव हो तो सत्यनारायण की कथा का पाठ करें या गीता का 18वां अध्याय पढ़ें. भगवान के मंत्र का जाप करें. नैवेद्य अर्पित करें और अंत में आरती करके अपनी भूल की क्षमा याचना करें.
ये चीजें करें दान
अक्षय तृतीया को बसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ की तिथि माना जाता है इसलिए इस दिन जल से भरे घड़े, पंखे, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, चीनी, साग, शरबत और सत्तू आदि गर्मी से राहत देने वाली चीजों का दान करना शुभ माना जाता है. ये भी कहा जाता है कि इस दिन जो कुछ भी दान किया जाएगा, वो सभी चीज अगले जन्म में प्राप्त होंगी. इसलिए तमाम लोग इस दिन सोने-चांदी का भी दान करते हैं.
अक्षय तृतीया की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार शाकल नगर में धर्मदास नामक वैश्य रहता था. धर्मदास स्वभाव से आध्यात्मिक प्रकृति का था और नियमित रूप से देवताओं और ब्राह्मणों का पूजन किया करता था. एक दिन धर्मदास ने अक्षय तृतीया के दिन की महिमा और इस दिन किए गए दान के महत्व के बारे में सुना. इसके बाद उस वैश्य ने अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान कर सबसे पहले अपने पितरों का तर्पण किया और उसके बाद विधि विधान से भगवान का पूजन किया और ब्राह्मणों को अन्न, सत्तू, दही, चना, गेहूं, गुड़, आदि का पूरी श्रद्धा के साथ दान दिया.
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