रायपुर
श्री राजराजेश्वरी महामाया माता मंदिर सार्वजनिक न्यास समिति के तत्वाधान में श्रीसीताराम विवाह पंचमी के पावन अवसर पर आयोजित नवदिवसीय श्रीराम कथा के प्रवचनकर्ता वाणी भूषण पं शंभू शरण लाटा महाराज ने हरि कृपा की व्याख्या करते हुए कहा इच्छा पूरी हो तो हरि कृपा और पूरी ना हो तो हरी इच्छा. वाणी को वीणा और गोली को बोली बनाया जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य है खुद पियें तो फिल्टर वाटर और दूसरों को पिछले पिलाएंगे तो बिना फिल्टर वाला. उन्होंने श्रोताओं से कहा कि भाई बहन वाणी को फिल्टर करना जरूरी है. बड़ों से कैसी बात करनी चाहिए इसका प्रमाण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने दिया. महाराज श्री ने कहा कि बड़ो से हाथ जोड़कर बात करनी चाहिए.
माता कौशल्या भरत संवाद का वर्णन करते हुए बताया कि राम का विरह शोक का समुद्र है, पूरा परिवार डूब जायेगा. महाराज धैर्य रखें राम फिर वापस आएंगे. पुत्र होना अलग बात है. पुत्र का सुख मिलना अलग बात है.
श्रवण कुमार चरित्र का वर्णन करते हुये लाटा महाराज ने बताया कि शिव जी ने जब वरदान दिया तभी कहा था पुत्र का सुख आपके भाग्य में नहीं लिखा है. फिर भी उन्होंने पुत्र का वरदान मांगा. शिव ने सचेत किया कि पुत्र होगा तो माता-पिता अंधा हो जाएंगे, लेकिन दुर्भाग्य है शिव नहीं समझा सके जीव को. क्योंकि श्रवण कुमार देख नहीं सकते थे केवल सुनते थे. इसीलिए उनका नाम श्रवण कुमार रखा गया. श्रवण ने माता-पिता से पूछा आपकी इच्छा बताएं, उन्होंने कहा बेटा तीर्थ करने की इच्छा थी लेकिन यह संभव कैसे होगा, श्रवण कुमार ने कहा यह अवश्य संभव होगा चिंता मत करो मैं लेकर जाऊंगा और श्रवण कुमार ने कांवड़ बनाया एक तरफ माता-पिता और कंधे पर तीर्थ की सामग्री रखकर तीर्थ करने चले.
महाराज श्री ने कहा जो कथा से होता है वह किसी से नहीं होता है. कथा से हृदय बदल जाता है. उन्होंने कलयुग में पुत्रों द्वारा माता-पिता की सेवा न करने के संबंध में वर्णन करते हुए बड़े भाव विभोर होकर गाना गया. मां तेरी सूरत से अलग क्या भगवान की सूरत होगी, तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, दुनिया कांटो की है, तू फुलवारी है. अनजाने में राजा दशरथ ने श्रवण कुमार को शब्द भेदी बाड़ मारकर मौत के घाट सुला दिया. श्रवण कुमार के बदले राजा दशरथ ने अंधे माता-पिता के पास जल लेकर उन्हें पीने का अनुरोध किया, माता-पिता ने श्रवण कुमार का आवाज न होने पर जल पीने से मना कर दिया.
महाराज श्री ने कहा दूसरे के हाथों का जल और भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए. आहार बिगड़ जाएगा, तो विचार बदल जाएगा, दूसरों के हाथों का खाना पानी नहीं खाना चाहिए, इससे व्यवहार बदल जाएगा, व्यापार बदल जाएगा, परिवार बिछड़ जाएगा, अंत में आपका संसार बिगड़ जाएगा अंधे माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि तुम भी पुत्र के वियोग में मरोगे. इसलिए भाई बहनों भाग्य से तकरार मत करो बल्कि भाग्य को स्वीकार करो. मां बाप है तो मिट्टी है, को जाए तो सोना है. “माता की ममता और पिता का सहारा जीवन में नहीं मिलेगा दोबारा”, पत्थर की मूर्ति में भगवान दिखता है, जन्म देने वाले माता-पिता में भगवान क्यों नहीं दिखता. अगर दिल किसी का दुखाया न होता, तो जमाने ने तुमको सताया न होता. माता ने कहा की मैंने तो बनाया था, विधाता ने बिगाड़ दिया. विधाता की व्यवस्था के संबंध में कहा कि तरबूज का फल पतले बेल में फलता है जबकि बड़े आम के वृक्ष में छोटा आम का वृक्ष लगता है. अंत में भरत जी ने राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किया है. महाराज श्री ने कहा भरत ने दशगात्र भी किया. दस रात्रि के बिना शुद्धि नहीं होती है. जो माता-पिता का श्राद्ध नहीं करता तो उनकी दुर्गति होती है.
लाटा महाराज ने हानि लाभ जीवन मरण यस अपयश विधि हाथ के संबंध में कहा विधि अर्थात ब्रह्मा या विधि का अर्थ प्रक्रिया है. किसी को क्षति न पहुंचाएं, अपयश से बचे. यह संसार नहीं है, दुखालय हैं. प्रेम बढ़ता है वासना घटना है. भगवान से ज्यादा संतों की महिमा होती है क्योंकि भगवान सुला देते हैं संत जगा देते हैं. भरत पद के ऊपर पादुका रख देते हैं भरत चरित्र को जो सुनेगा उसे सीताराम का आशीर्वाद मिल जाएगा. अनसूईया को सतीयों ने महासती की संज्ञा दी और कहा धीरज धर्म मित्र और नारी उनकी परीक्षा विपत्ति के समय होती है. पत्नी को मन क्रम वचन से पति की सेवा करना चाहिए. अभाव स्वभाव प्रभाव से ही मनुष्य झुकता है.
आज 9 दिसंबर सोमवार को अरण्य कांड अरण्य अर्थात वन की कथा होगी. आज की कथा में राजेश्री महंत रामसुंदर दास ने भी कथा का श्रवण किया. न्यास समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा एवं मंदिर व्यवस्थापक पं विजय कुमार झा ने कथा में अधिक से अधिक संख्या में पधार कर राम रस का पान करने की अपील भक्तगणों से की है.
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